- कौन सा बौद्ध ग्रंथ शाही इमारतों में चित्रित आंकड़ों के अस्तित्व का वर्णन करता है?
A. विनयपिटक
B. सुत पिटक
C. अभिधम्म पिटक
D. इनमें से कोई नहीं
Ans. A - चित्रकारी के बारे में निम्न में से कौन सा कथन सही हैं:
(a) वत्स्ययान द्वारा लिखित कामसुत्र में 64 प्रकार के चित्रों का उल्लेख किया गया है.
(b) विष्णुधर्मोत्तर पुराण में चित्रासूत्र नामक चित्रकला पर एक खंड है.
(c) नाटक मुद्राक्षक्ष में कई पाटास का उल्लेख है.
(d) लेप्सासिट्र्स, लेक्सेट्रस गुप्ता युग के विभिन्न प्रकार के चित्रों के उदाहरण हैं
सही विकल्प हैं:
A. (a) और (b)
B. (b) और (d)
C. (a) और (d)
D. (a), (b) और (c)
Ans. D - फूल, पत्तियों और पौधों को किस अवधि के चित्रों में पहली बार दर्शाया गया था?
A. मुगल सल्तनत
B. गुप्त काल
C. दिल्ली सल्तनत
D. मौर्य काल
Ans. C - इतिहास की अवधि में पेंटिंग्स या चित्रकारी में फारसी और अरबी का प्रभाव कब देखा गया था?
A. मुगल सल्तनत
B. दिल्ली सल्तनत
C. दोनों (A) और (B)
D. इनमें से कोई नहीं
Ans. B
- भारत के किस हिस्से में लघु चित्रकला विकसित हुई थी?
A. उत्तरी भारत
B. उत्तर-पश्चिम भारत
C. पूर्वी भारत
D. पूर्वोत्तर भारत
Ans. C - किस सम्राट के शासनकाल में रोशनी और व्यक्तिगत लघुचित्रों की जगह दीवार चित्रकला का सबसे महत्वपूर्ण रूप रहा है?
A. मोहम्मद बिन तुगलक
B. अलाउद्दीन खिलजी
C. अकबर
D. शाहजहां
Ans. C - किस मध्ययुगीन भारत के सम्राट की अवधि के दौरान चित्रकला अपने चरम पर पहुंची थी ?
A. अकबर
B. शाहजहां
C. जहांगीर
D. औरंगजेब
Ans. C - बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट में निम्नलिखित में से किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी?
(a) रबींद्रनाथ टैगोर
(b) अबीन्द्रनाथ टैगोर
(c) ई.बी हावेल
(d) आनंद केहतीस
सही विकल्प हैं
A. दोनों (a) और (b)
B. दोनों (b) और (c)
C. दोनों (c) और (d)
D. उपरोक्त सभी
Ans. D - 1948 में बम्बई में प्रगतिशील कलाकार समूह ……….. के तहत विकसित किया गया था?
A. के.सी.एस.पनिक्कर
B. एस.एच राजा
C. फ्रांसिस न्यूटन सूजा
D. एस.के बाकरे
Ans. C - इनमें से कौन सा मद्रास स्कूल ऑफ़ आर्ट से है?
A. देबी प्रसाद रॉय चौधरी
B. के.सी.एस.पनिक्कर
C. दोनों A और B
D. इनमें से कोई नहीं
Ans. C
भारतीय चित्रकला
भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। 7वीं शताब्दी में अजंता और एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण हैं।
भारतीय चित्रकारी की शैलियां
भारतीय चित्रकारी को मोटे तौर पर भित्ति चित्र व लघु चित्रकारी में विभाजित किया जा सकता है। भित्ति चित्र गुफाओं की दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी को कहते हैं, उदाहरण के लिए अजंता की गुफाओं व एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर का नाम लिया जा सकता है। दक्षिण भारत के बादामी व सित्तानवसाल में भी भित्ति चित्रों के सुंदर उदाहरण पाये गये हैं। लघु चित्रकारी कागज या कपड़े पर छोटे स्तर पर की जाती है। बंगाल के पाल शासकों को लघु चित्रकारी की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है।
अजंता की गुफाएं
इन गुफाओं का निर्माणकार्य लगभग 1000 वर्र्षों तक चला। अधिकांश गुफाओं का निर्माण गुप्तकाल में हुआ। अजंता की गुफाएं बौद्ध धर्म की महायान शाखा से संबंधित हैं।
एलोरा की गुफाएं
हिंदू गुफाओं में सबसे प्रमुख आठवीं सदी का कैलाश मंदिर है। इसके अतिरिक्त इसमें जैन व बौद्ध गुफाएं भी हैं।
बाघ व एलीफेटा की गुफाएं
बाघ की गुफाओं के विषय लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं। यहां से प्राप्त संगीत एवं नृत्य के चित्र अत्यधिक आकर्षक हैं।
हाथी की मूर्ति होने की वजह से पुर्तगालियों ने इसका नामकरण एलीफेन्टा किया।
जैन शैली
इसके केद्र राजस्थान, गुजरात और मालवा थे। देश में जैन शैली में ही सर्वप्रथम ताड़ पत्रों के स्थान पर चित्रकारी के लिए कागज का प्रयोग किया गया। इस कला शैली में जैन तीर्र्थंकरों के चित्र बनाये जाते थे। इस शैली पर फारसी शैली का भी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। नासिरशाह (1500-1510 ई.) के शासनकाल में मांडू में चित्रित नीयतनामा के साथ ही पांडुलिपि चित्रण में एक नया मोड़ आया।
पाल शैली
यह शैली 9-12वीं शताब्दी के मध्य बंगाल के पाल वंश के शासकों के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। इस शैली की विषयवस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित थी। दृष्टांत शैली वाली इस चित्रकला शैली ने नेपाल और तिब्बत की चित्रकला को भी काफी प्रभावित किया।
मुगल शैली
मुगल चित्रकला शैली भारतीय, फारसी और मुस्लिम मिश्रण का विशिष्ट उदाहरण है। अकबर के शासनकाल में लघु चित्रकारी के क्षेत्र में भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। उसके काल की एक उत्कृष्ट कृति हमजानामा है। मुगल चित्रकला नाटकीय कौशल और तूलिका के गहरेपन के लिए विख्यात है।
जहांगीर खुद भी एक अच्छा चित्रकार था। उसने अपने चित्रकारों को छविचित्रों व दरबारी दृश्यों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। उस्ताद मंसूर, अब्दुल हसन और बिशनदास उसके दरबार के सबसे अच्छे चित्रकार थे। शाहजहां के काल में चित्रकारी के क्षेत्र में कोई ज्यादा कार्य नहीं हुआ, क्योंकि वह स्थापत्य व वास्तु कला में ज्यादा रुचि रखता था।
राजपूत चित्रकला शैली
राजपूत चित्रकला शैली का विकास 18वींशताब्दी के दौरान राजपूताना राज्यों के राजदरबार में हुआ। इन राज्यों में विशिष्ट प्रकार की चित्रकला शैली का विकास हुआ, हालांकि इनमें कुछ ऐसे समान तत्व हैं जिसकी वजह से इसका नामकरण राजपूत शैली किया गया। यह शैली विशुद्ध हिंदू परंपराओं पर आधारित है। इस शैली में रागमाला से संबंधित चित्र काफी महत्वपूर्ण हैं। इस शैली में मुख्यतया लघु चित्र ही बनाये गये। राजपूत चित्रकला की एक असाधारण विशेषता आकृतियों का विन्यास है। लघु आकृतियां भी स्पष्टत: चित्रित की गई हैं। इस शैली का विकास कई शाखाओं में हुआ-
- मालवा शैली:मालवा शैली अपने चमकीले और गहरे रंगों के कारण विशिष्ट है। मालवा शैली के रंगचित्रों की प्रमुख श्रृंखला रसिकप्रिया है।
- मेवाड़ शैली: मेवाड़ शैली में पृष्ठभूमि सामान्यत: बेलबूटेदार और वास्तुशिल्प से परिपूर्ण है।
- बीकानेर शैली:बीकानेरी शैली के अधिकांश कलाकार मुस्लिम थे। यह शैली अपने सूक्ष्म एवं मंद रंगाभास के लिए प्रसिद्ध है।
- बूंदी शैली:इस शैली में नारी सौंदर्य के चित्रण के लिए कुछ अपने मानदण्ड स्थापित किए गए।
- कोटा शैली:कोटा शैली काफी हद तक बूंदी शैली से मिलती-जुलती है। इस शैली में विरल वनों में सिंह और चीतों के शिकार के चित्र विश्वविख्यात हैं।
- आंबेर शैली:आंबेर शैली के रंगचित्र समृद्ध हैं और उनमें विषय वैविध्य भी है लेकिन इसमें सूक्ष्मता का अभाव है।
- किशनगढ़ शैली:उन्नत ललाट, चापाकार भौंहें, तीखी उन्नत नासिका, पतले संवेदनशील ओंठ तथा उन्नत चिबुक सहित नारी का चित्रण इस शैली का वैशिष्ट्य है।
- मारवाड़ शैली:इस शैली के रंगचित्रों में पगड़ी की कुछ विशेषताएं हैं। रंग-संयोजन में चमकीले रंगों का प्राधान्य है।
- पहाड़ी चित्रकला शैली:इस कला के चित्रित वृक्षों की बनावट पर नेपाली चित्रकला का व्यापक प्रभाव है। पहाड़ी चित्रकारों में कृष्ण गाथा अत्यंत लोकप्रिय है। बसौली शैली, गढ़वाल शैली, जम्मू शैली व कांगड़ा शैली पहाड़ी चित्रकला शैली की उप-शैलियां हैं।
बंगाल शैली
चित्रकारी की बंगाल शैली का विकास 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ब्रिटिश राज के दौरान हुआ। यह भारतीय राष्ट्रवाद से प्रेरित शैली थी, लेकिन इसको कई कला प्रेमी ब्रिटिश प्रशासकों ने भी प्रोत्साहन दिया। रवींद्रनाथ टैगोर के भतीजे अवनींद्रनाथ टैगोर इस शैली के सबसे पहले चित्रकार थे। उन्होंने मुगल शैली से प्रभावित कई खूबसूरत चित्र बनाये। टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कृति भारत-माता थी जिसमें भारत को एक हिंदू देवी के रूप में चित्रित किया गया था। 1920 के बाद भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के साथ इस शैली का पतन हो गया।
आधुनिक प्रवृत्ति
औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय कला पर पश्चिमी प्रभाव पूरी तरह से पडऩे लगा था। इस काल के दौरान कई ऐसे चित्रकार हुए जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण और यथार्थवाद के वेश में भारतीय विषयों का सुंदर चित्रण किया। इसी दौरान जेमिनी रॉय जैसे कलाकार भी थे जिन्होंने लोककला से प्रेरणा ली।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद प्रगतिशील कलाकारों ने स्वतंत्रोत्तर भारत की आकांक्षाओं को व्यक्त करने के लिए नये विषयों व माध्यमों को चुना। इस समूह के छह प्रमुख चित्रकारों में के.एच. आगा, एस. के. बकरे, एच. ए. गदे, एम. एफ. हुसैन, एस. एच. रजा और एफ. एन. सूजा शामिल थे। इस समूह को 1956 में भंग कर दिया गया लेकिन छोटे से ही समय में इसने भारतीय चित्रकला परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया।
इस काल की एक प्रसिद्ध चित्रकार अमृता शेरगिल हैं जिन्होंने नवीन भारतीय शैली का सृजन किया। अन्य महान चित्रकारों में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर और रवि वर्मा का नाम शामिल है। वर्तमान प्रसिद्ध चित्रकारों में बाल चाब्दा, वी. एस. गाईतोंडे, कृष्णन खन्ना, रामकुमार, तैयब मेहता और अकबर पदमसी शामिल हैं। जहर दासगुप्ता, प्रोदास करमाकर और बिजॉन चौधरी ने भी भारतीय कला व संस्कृति को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है।