राजस्थानी साहित्य

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राजस्थानी साहित्य

संस्कृत में रचित ऐतिहासिक ग्रंथ :-

1 .पृथ्वीराज विजय-

इसे जयानक ने 12 वीं सदी के अंतिम चरण में लिखा था

सपादलक्ष के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास के लिए यह ग्रंथ महान महत्व का है

डॉ दशरथ शर्मा की मान्यता है कि इस ग्रंथ की रचना तराइन के युद्ध (1191-92 )से पूर्व कर दी गई थी

इस ग्रंथ में अजमेर के उत्तरोत्तर विकास पर अच्छा प्रकाश डाला गया है

 

2 .हम्मीर महाकाव्य-

यह महाकाव्य हम्मीर की मृत्यु के सो वर्ष बाद लिखा गया प्रतीत होता है

इसकी रचना नयन चंद्र सूरी ने की थी

रणथंबोर के चौहान के इतिहास पर यह ग्रंथ अच्छा प्रकाश डालता है

यदि इस ग्रंथ में वर्णित वर्णन को फारसी तवारीखो से तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि लेखक ने तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं की पर्याप्त छानबीन करके इस ग्रंथ की रचना की है

 

  1. एकलिंग महात्म्य-

वैसे तो इसकी तुलना पुराणों से की जाती है

लेकिन इसका राज वर्णन का अध्याय इतिहास की दृष्टि से बड़े महत्व का है

इससे मेवाड़ के महाराणा की वंशावली का ज्ञान होता है

इसके रचयिता स्वयम महाराणा कुंभा माने जाते हैं

राजस्थानी में रचित ऐतिहासिक ग्रंथ :-

राजस्थानी भाषा अति प्राचीन काल से एक समृद्ध भाषा रही इस भाषा में भी अनेक ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना की गई रासो को राजस्थानी भाषा के विशेष ग्रंथ माने जाते हैं  रासो साहित्य के अंतर्गत प्रथ्वीराज रासो ,हम्मीर रासो, बीसलदेव रासो ,खुमान रासो प्रमुख माने जाते हैं

रासो वीर रस प्रधान महाकाव्य होते हैं

पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज चौहान व मोहम्मद गौरी के युद्ध का वर्णन है

इसकी रचना पृथ्वीराज चौहान के मित्र चंद्रवरदाई ने की थी

अतः यह ग्रंथ अति विश्वसनीय ग्रंथ माना जाता है

हम्मीर रासो में हम्मीर की उपलब्धियों का वर्णन है

इसी प्रकार बीसलदेव रासो में भी बीसलदेव की उपलब्धियों का वर्णन है

इसके अलावा राजस्थानी साहित्य के कई अन्य ग्रंथ भी हैं

जिन्होंने राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास पर अच्छा प्रकाश डाला है

जो निम्न प्रकार है –

 

1.कान्हड़देव प्रबंध-

इसकी रचना पद्यनाभ नामक कवि ने जालोर के शासक अखेराज के आश्रय में की थी

इस प्रबंध काव्य में कवि ने अलाउद्दीन के जालौर आक्रमण व उसमें का कान्हडदे द्वारा प्रदर्शित वीरता का वर्णन किया है

संभवत:यही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो हमें ऐतिहासिक घटनाओं की सच्ची जानकारी देता है

इसका रचनाकाल 1455 के आसपास माना जाता है यह जैन देवनागरी में रचित है

इससे राजस्थानी भाषा का विकास समकालीन भूगोल, सामाजिक परंपराओं ,सैन्य व्यवस्था आदि के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है

 

2 .बेलि क्रिसन रुक्मणी री-

यह 304 छंदों में रचित है इस के रचियता कुंवर पृथ्वीराज राठौर थे

यह रचना मूलतः भक्ति रस से ओतप्रोत है

लेकिन इस में तत्कालीन सामाजिक जीवन ,रीति रिवाज, उत्सव व त्योहार व वेशभूषा पर भी प्रकाश डाला गया है

इस रचना के द्वारा तत्कालीन काव्य सौरभ तथा साहित्य गरिमा का भी पता चलता है

 

  1. वंश भास्कर-

यह महाकाव्य वीर रस प्रधान है और इसकी रचना बूंदी  राज्य के राज कवि सूर्यमल मिश्रण ने की थी

इसमें मध्यकालीन राजस्थान की राजनीतिक घटनाओं का सजीव वर्णन किया गया है

उन्होंने इस काव्य का आधार प्रमुख रुप से चारण भाटों की दंतकथाओं को अवश्य बनाया है

फिर भी यह ऐतिहासिक तथ्यों से शून्य नहीं है

इस ग्रंथ में कवि ने बूंदी राज्य का वर्णन विस्तृत रुप से और राजपूताने के अन्य राज्यों का वर्णन संक्षिप्त रुप से किया है

इसमें राजस्थान पर मराठों के आक्रमणों का भी वर्णन है

 

  1. सूरज प्रकाश-

सूरज प्रकाश के रचियता करणीदान थे

वह जोधपुर नरेश अजित सिह के दरबारी कवि थे

इस में करणीदान ने प्रत्यक्ष रुप से देखे युद्ध का वर्णन और तत्कालीन सामाजिक जीवन की सजीव झांकी प्रस्तुत की है

इस में तत्कालीन वेशभूषा रीति रिवाज आखेट व यज्ञ पर भी प्रकाश डाला है