उदयपुर (udaipur) — दर्शनीय स्थल

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➤ अद्वितीय सौन्दर्य एवं प्राकृतिक छटा से सुसज्जित उदयपुर को पूर्व का वेनिस, झीलों की नगरी, राजस्थान का कश्मीर आदि अनेक विशेषण दिए गए हैं।
➤ सुन्दर पर्वतमालाओं के मध्य अवस्थित शहर नीले जल से युक्त झीलों में अपनी परछाई निहारते हुए यहां के राजप्रासाद, शीतल समीर के झोंकों से सम्पूर्ण वातावरण को सुवासित करने वाले यहां के पुष्पोद्यान और मेवाड़ के शौर्यपूर्ण अतीत का स्मरण कराने वाले यहां के अवशेष निस्संदेह रूप से उदयपुर को पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।

 

उदयपुर (udaipur) — राजमहल

➤ पिछोला झील के तट पर स्थित ये महल उदयपुर नगर में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित ये महल इतने भव्य और विशाल है कि प्रसिद्ध इतिहासकार फग्र्यूसन ने इन्हें ‘राजस्थान के विण्डसर महलों’ की संज्ञा दी।
➤ महलों में सबसे पुराना भाग ‘रायआंगन’ नौचैकी, धूणी आदि को महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था। इन महलों से नगर का विहंगम और पिछोला झील का अत्यन्त सुन्दर दृश्य दृष्टिगोचर होता है।
➤ इन महलों के प्रताप कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, मोती महल, भीम विलास, छोटी चित्रशाला, स्वरूप चैपाड़, प्रीतम निवास, शिवनिवास, इत्यादि बहुत सुन्दर व दर्शनीय है।
➤ राजमहल में मयूर चैक का सौन्दर्य अनूठा है।
चारों ओर कांच की बड़ी बारीकी एवं कौशल से जमाकर मोर और कुछ मुर्तियां बनाई गई हैं। यहां बने पांच मयूरों का सौन्दर्य देखते ही बनता है।
➤ प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप के जीवन से संबधित अनेकों चित्र, अस्त्र-शस्त्र, जिरह-बख्तर, इत्यादि का संग्रह है।
➤ यहीं महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दीघाटी के युद्ध में उपयोग किया गया था।

 

उदयपुर (udaipur) — लेक पैलेस

➤ यह महल सन् 1746 में महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने बनवाया।
➤ लगभग चार एकड़ में फैले इस महल के चारों ओर जल है, जिसके कारण विश्व के सुन्दर महलों में इसकी गणना की जाती है।
➤ महल की दीवारों पर बेजोड़ चित्रकारी नयनाकर्षक है। वर्तमान में यहां भारत के सर्वश्रेष्ठ होटलों में से लेक पैलेस होटल है

 

उदयपुर (udaipur) — जनान महल

➤ राजमहल के दक्षिण में एक मध्यकालीन भवन है जो मेवाड़ के महाराणा कर्णसिंह की महारानियों हेतु सन् 1620 में निर्मित किया गया था।
➤ महल के अन्दर एक विशाल प्रांगण है। महल के ऊपर बनी जालीदार खिड़कियों से हवा और प्रकाश तो मिल ही जाता था, साथ ही रनिवास का पर्दा भी हो जाता था।
➤ जनानी ड्योढी से गुजर कर बाएं हाथ की ओर रंगमहल में पहुंचा जाता है जहां राज्य का सोना-चांदी और खजाना रखा जाता था, बाई ओर पीताम्बर रायजी, गिरधर गोपालजी तथा बाणनाथजी की मूर्तियां है।
➤ द्वितीय द्वार पत्थरों से जड़े विशाल प्रांगण लक्ष्मी चौक में खुलता है। इस चौक के दोनों ओर छतरियां वाले सुसज्जित भवन है। दक्षिणी छोर महारानी के अतिथियों के लिए था।

 

उदयपुर (udaipur) — राजकीय संग्रहालय

➤ राजमहल के ही एक हिस्से में राज्य सरकार का संग्रहालय है।
➤ इस संग्रहालय में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व संबंधी साम्रगी का सम्पन्न संग्रह है।
➤ भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहने जाने वाली पगड़ियों व साफों के नमूने, सिक्के, उदयपुर के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खुर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदला-बदली की गई थी।

➤ उदयपुर के आस-पास के भागों में खुदाई में प्राप्त मूर्तियों एवं शिलालेखों का भी यहां अच्छा संग्रह है।

 

उदयपुर (udaipur) — जगदीश मंदिर

➤ यह मंदिर राजमहलों के पहले मुख्य द्वार बड़ीपाल से लगभग 175 गज की दूरी पर स्थित है।
इसका निर्माण सन् 1651 में महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628-59) द्वारा हुआ था।
➤ अनुमानतः इस पर 15 लाख रुपया व्यय हुआ था। यह 80 फुट ऊंचे प्लेटफार्म पर निर्मित है। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश की भव्य मूर्ति है।

 

उदयपुर (udaipur) — पिछोला झील

➤ इस झील को चैदहवीं शताब्दी में एक बनजारे द्वार महाराणा लाखा के समय में बनवाया गया था।
➤ कालान्तर में उसके पुननिर्माण एवं जीर्णाेद्धार भी हुए हैं।
➤ उत्तर से दक्षिण तक करीब 4.5 किलोमीटर चैड़ी यह झील 10-15 फुट गहरी है।
➤ इसकी जल क्षमता 41 करोड़ 20 लाख घन फुट है। झील के तट पर बने घाट और मंदिर आकर्षण के केन्द्र हैं।

 

उदयपुर (udaipur) — फतहसागर

➤ नगर के उत्तर-पश्चिम में करीब 5 किलोमीटर दूर झील सर्वप्रथम सन् 1678 में महाराणा जयसिंह द्वारा बनवाई गई थी, परन्तु एक बार की अतिवृष्टि ने इसे तहस नहस कर दिया।
➤ उसके पुननिर्माण का श्रेय महाराणा फतेहसिंह को है जिन्होंने 6 लाख रुपयों की लागत से इस सशक्त बांध का निर्माण करवाया, उन्हीं के नाम पर झील को फतहसागर कहा जाने लगा।
➤ यह झील तीन वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है।

उदयपुर (udaipur) — नेहरू गार्डन

➤ फतहसागर के मध्य में समुद्रतट से लगभग 1960 फुट ऊंचाई पर स्थित यह उद्यान अधिकतम 779 फुट लम्बा, 292 फुट चैड़ा है तथा साढ़े चार एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
➤ उद्यान में पहुंचने के लिए झील के किनारे से नियमित नौका सेवा की व्यवस्था उपलब्ध है।

इस उद्यान के फव्वारें मैसूर के वृन्दावन उद्यान की तरह है।
➤ रात्रि में रंगीन प्रकाश व्यवस्था से ये ऐसे दृष्टिगोचर होते हैं मानों धरती के वृक्ष से रंगों की सहस्त्रों धाराएं प्रस्फुटित हो रही हों।
➤ फतहसागर झील के मध्य किनारे से कुछ दूर एक छोटे से टापू पर एक विशाल जेट फव्वारा भी लगाया गया है।

 

उदयपुर (udaipur) — महाराणा प्रताप स्मारक (मोती मगरी)

➤ फतहसागर के किनारे पहाड़ी मोती नगरी को महाराणा प्रताप स्मारक के रूप में विकसित किया गया है।
➤ मोती नगरी का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह उदयपुर नगर के बसाने के पूर्व इसी पहाड़ी ‘‘मोती महल’’ बनवा रहे थे, जिनके भग्नावेष आज भी विद्यमान है।
➤ इन्हीं खण्डहरों के पास चेतक पर सवार प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।
➤ फूलदार पौधों की क्यारियां, फव्वारों से युक्त जलाशय एवं छोटे-बड़े सुन्दर लाॅन इस स्मारक की भव्यता की श्रीवृद्धि करते हैं।

उदयपुर (udaipur) — गुरू गोविन्दसिंह चट्टान बाग

➤ फतहसागर के सर्पाकार मार्ग पर पहाड़ी को कांट-छांट कर एक सुन्दर उद्यान बनाया गया है जिसे चट्टान बाग कहते है।
➤ इस उद्यान से सम्पूर्ण झील का दृश्य बड़ा ही सुन्दर दिखाई देता है। यहां से सूर्यास्त अत्यधिक आकर्षक एवं सुन्दर दिखाई देता है।
➤ इसी के पास से नेहरू उद्यान के लिए नावें जाती है। समीप ही जापानी उद्यान पद्धति के आधार पर एक सुन्दर ‘भामाशाह उद्यान’ भी है।

 

उदयपुर (udaipur) — पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र

➤ भारतीय संस्कृति, लोककला तथा परम्पराओं के संरक्षण एवं उन्हें पुनर्जीवित करने हेतु चार राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा व राजस्थान का पश्चिमी सांस्कृतिक केन्द्र पिछोला के तट गणगौर घाट पर स्थित बागोर की हवेली में स्थापित किया गया है।

उदयपुर (udaipur) — उदयसागर

➤ उदयपुर के पूर्व में लगभग 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस झील का निर्माण उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदयसिंह ने सन् 1559 से सन् 1565 के मध्य करवाया था।
➤ झील लगभग 4 किलोमीटर क्षेत्र में फैली है।

उदयपुर (udaipur) — सहेलियों की बाड़ी

➤ यह उदयपुर का सुन्दरतम उद्यान है। महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय ने इसका निर्माण तथा महाराणा फतहसिंह ने इसका पुननिर्माण करवाया था।
➤ कहा जाता है कि यहां राजकुमारियां अपनी सहेलियों के साथ मनोरंजन के लिए आती थी। इसीलिए इसे सहेलियों की बाड़ी कहा जाता है।
➤ यहां फव्वारों की इतनी सुन्दर व्यवस्था है कि ग्रीष्म ऋतु की तपती दोपहरी में भी सावन का सा आनन्द प्राप्त होता है।
➤ सहेलियों की बाड़ी में प्रवेश करते ही केन्द्रीय हौज के चारों ओर काले संगमरमर की छतरियां है तथा मध्य में श्वेत संगमरमर की बड़ी छतरी बनी है।
➤ हौज तथा छतरियों में फव्वारें लगे हैं। इसके पीछे संगमरमर के चार गज निर्मित है तथा जलाशय के मध्य एक सुन्दर फव्वारा है। यहां बच्चों की एक रेलगाड़ी भी है।

 

उदयपुर (udaipur) — सुखाड़िया सर्किल

➤ पश्चिम रेलवे ट्रेनिंग स्कूल के समक्ष स्थित सुखाड़िया सर्किल के मध्य में निर्मित 42 फुट ऊंचा फव्वारा देश में अपने ढंग का अनोखा है।
➤ फव्वारे के ऊपरी भाग में विशाल गेहूं की बाली बनाई गई है।
सर्किल के एक कोने पर आधुनिक राजस्थान के निर्माता पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्री मोहनलाल सुखाड़िया की प्रतिमा के पास उद्यान भी बनाया गया है।
➤ जिले में उपरोक्त दर्शनीय स्थलों के अलावा यहां गुलाब बाग, संजयपार्क, सज्जनगढ़ महल, सौर वैधशाला आदि भी है।