राजस्थान में सिक्कों के प्रचलन की शुरुआत, इतिहास और महत्व

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-: राजस्थान में सिक्कों के प्रचलन की शुरुआत, इतिहास और महत्व :-

1.राजस्थान में सोने चांदी ,तांबे और सीसे के सिक्के प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए है

2.राजस्थान की विभिन्न रियासतों के नरेश अपने अपने सिक्के चलाते थे उनकी रियासतों मे टकसालों की व्यवस्था थी

3.इन सिक्कों पर राजाओं के नाम ,उनकी वंशावली और उनका वंश परिचय मिलता है

4.सिक्कों पर प्रयुक्त विभिन्न भाषाओं से राजस्थान की तत्कालीन भाषाओं की जानकारी मिलती है

5.सिक्कों पर अंकित विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र से राजाओं के इष्ट देवों और तत्कालीन धार्मिक अवस्था का बोध होता है

6.मुद्राओं की प्राप्ति से राजाओं के राज्यों की सीमा का भी ज्ञान होता है लेकिन यह तथ्य सदैव हर जगह सही नहीं उतरता

7.क्योंकि सिक्के आदमियों के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाए जा सकते थे

8.व्यापार के तो सिक्के मूलाधार थे  अतः सिक्कों से तत्कालीन व्यापार का पता चलता है

9.इन सबके अलावा सिक्के तत्कालीन अर्थव्यवस्था के तो अच्छे मापदंड थे ही

10.सोने चांदी के सिक्कों का प्रचलन इस बात का स्पष्ट प्रतिक था कि उस समय अमुक रियासत की आर्थिक अवस्था अच्छी थी

11.मुद्राओं के क्षेत्र में राजस्थान पर्याप्त समृद्धशील प्रदेश रहा है

12.प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग के अब तक लाखों की संख्या में सिक्के उपलब्ध हुए हैं

13.सिक्के सोने चांदी व तांबे के मिले हैं

14.इन मुद्राओं के वैज्ञानिक अवलोकन से राजस्थान के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान होता है

15.राजस्थान के विभिन्न भागों में मालव ,शिव,योधेय,शक,आदि जनपदों के सिक्के प्राप्त हुए हैं

16.जो इस बात का प्रमाण है कि वह लेनदेन व तोल के अच्छे साधन बन गए थे

17.कई शिलालेखों और साहित्यिक लेखो मे द्रम और एला क्रमशः सोना और चांदी की मुद्रा के रूप में उल्लेखित मिलते हैं

18.इन सिक्कों के साथ-साथ रूपक नाणक नाणा आदि शब्द भी मुद्राओं के वाचक हैं

19.आहड़ के उत्खनन के द्वितीय युग के छह तांबे के सिक्के मिले हैं इनका समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी माना जाता है

20.बहुत समय तक मिट्टी में दबे रहने के कारण सिक्कों का अंकन तो स्पष्ट रुप से नहीं पढ़ा गया पर उन पर अंकित त्रिशुल अवश्य दृष्टव्य है

21.बप्पा का सिक्का सातवीं शताब्दी का प्रसिद्ध सिक्का माना गया है जिसका वर्णन डॉक्टर ओझा ने भी किया है

22.दिल्ली सुल्तानों के भी  सिक्के और मुगल सम्राट की भी सिक्के राजस्थान रियासतों में चलाए गए थे

23.1565 में मुगलों का जोधपुर पर अधिकार हो जाने पर वहा मुगल बादशाह के सिक्के का प्रचलन हुआ

24.मुगल साम्राज्य के पतन के दिनों में जोधपुर के राठौड़ नरेश ने अपने नाम के सिक्के चलाए थे

25.1780 में जोधपुर नरेश विजयसिंह ने बादशाह से अनुमति लेकर अपने नाम से विजय शाही चांदी के रुपए चलाएं

26.तब से ही जोधपुर व नागौर की टकसाल चालू हुई थी

27.1781 में जोधपुर टकसाल में शुद्ध होने की मौहर बनने लगी

28.24 मई 1858 में राजस्थान की रियासतो के सिक्कों पर बादशाह के नाम के स्थान पर महारानी विक्टोरिया का नाम लिखा जाने लगा

29.23 जुलाई 1877 मे अलवर नरेश ने अंग्रेज सरकार से अपने राज्य में अंग्रेजी सिक्के प्रचलित करने और अपने यहां से सिक्के  ना ढालने का इकरारनामा लिखा

30.बीकानेर नरेशों ने भी मुगल दरबार में मनसब स्वीकार की थी अतः बीकानेर में भी मुगल मुद्रायें प्रचलित की गई थी

31.गज सिंह ने आलमगीर के सिक्के चलाएं इसके उपरांत बीकानेर नरेशों ने भी अपने नाम के सिक्के ढलवाना आरंभ किया

32.1900 में जोधपुर राज्य की टकसालों मे विजय शाही रुपया बनना बंद हो गया और अंग्रेजी कलदार रुपया चलने लगा

33.1936 में जोधपुर में तांबे का सिक्का फिर से बनाया जाने लगा

34.राजस्थान में सर्वप्रथम 1900ई.मे स्थानीय सिक्कों के स्थान पर कलदार का चलन जारी हुआ

35.जयपुर के कछवाहा नरेशों ने मुगल सम्राटों से स्वतंत्र टकसाल की अनुमति पहले ही प्राप्त कर ली थी

36.जयपुर नरेशों ने विशुद्ध  चांदी का झाडशाही रुपया चलाया जो तोल में एक तोला होता था

37.उस पर किसी राजा का चिन्ह नहीं होता था केवल उर्दू लिपि में उस पर अंकित रहता था

38.इस रुपए का प्रचलन द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व तक रहा जब

39.ब्रिटिश सरकार ने अपने शासकों के नाम पर चांदी का कलदार रुपया चलाना आरंभ कर दिया तो राजस्थान के शासकों के स्थानीय सिक्के बंद होते ही चले गए

40.राजस्थान में प्राप्त इन मुद्राओं से स्पष्ट है कि यहां के नरेश अपने नाम के सिक्के ढलवाते थे

41.लेकिन 12 वीं सदी के उपरांत यहा दिल्ली के सुल्तानों के सिक्के चले और अकबर के शासन से मुगल सम्राटों के सिक्के यहां चले

42.मुद्राएं प्रमाणित करती है कि राजपूत नरेश ने मुस्लिम शासकों की प्रभुता स्वीकार कर ली थी

43.इंग्लैंड के शासकों के नाम की मुद्राएं तो राजस्थान में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बाद तक चलती रही

44.मुद्राएं इस तथ्य को पूर्णता स्पष्ट करती है कि ब्रिटिश सरकार ने राजस्थान की राजनीतिक व आर्थिक अवस्था पर अपना पुर्णत:प्रभाव जमा लिया था