सीता माता अभ्यारण्य – प्रतापगढ़

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-: सीता माता अभ्यारण्य – प्रतापगढ़ :-

1.स्थापना – 1979 में

क्षेत्रफल – 422.95 वर्ग किलोमीटर

उपनाम – उड़न गिलहरियों का स्वर्ग

चितल की मातृभूमि

 

2.यह अभ्यारण्य राजस्थान के दक्षिण पश्चिम में प्रतापगढ़ जिले में स्थित है, जहां भारत की तीन पर्वत मालाएं अरावली विंध्याचल और मालवा का पठार आपस में मिलकर ऊंचे सागवान वनों की उत्तर पश्चिमी सीमा बनाते है

 

3.राजस्थान के एकमात्र इसी अभयारण्य में सागवान वनस्पति पाई जाती है

 

4.कर्ममोई (कर्म मोचनी) नदी का उद्गम स्थल सीता माता अभ्यारण्य है इसके अलावा जाखम टांकिया भूदो तथा नालेश्वर नमक नदियां इसी अभयारण्य से होकर बहती है

 

5.ऐसा माना जाता है कि  त्रेता युग में सीता जी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया था उनके दो पुत्रों लव और कुश के नाम पर सदाबहार जल स्रोत स्थित है जिनमें गर्म और ठंडा जल पाया जाता है

 

6.यहां सीता माता का मंदिर है जिसमें प्रतिवर्ष ज्येष्ट अमावस्या को मेला भरता है

 

7.यह पाई जाने वाली उड़न गिलहरियों को स्थानीय भाषा में आशोवा नाम से जाना जाता है इसका वैज्ञानिक नाम रेड  फ्लाइंग स्किवरल पेटोरिस्टा  एल्बी वेंटर है

 

8.यह अभयारण्य चौसिंगा के प्रमुख राष्ट्रीय स्थलों में से एक है यह चौसिंगा की जन्म भूमि के नाम से भी जाना जाता है चौसिंगा एंटी लॉप प्रजाति का दुर्लभतम वन्य जीव हैं  जिसे स्थानीय भाषा में भेडल भी कहा जाता है

 

9.यह जंगली मुर्गों के अलावा पेंगोलिन (आडाहुला) जैसा दुर्लभ वन्य जीव भी पाया जाता है

 

10.इस अभयारण्य में आर्किड एवं विशाल वृक्षीय मकड़ीयां भी दर्शनीय है

 

11.यह स्तनधारी जीवों की 50 उभयचरो की चालीस और पक्षियों की 300 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है

 

12.भारत के कई भागों से कई प्रजातियों के पक्षी प्रजनन के लिए यहां आते है

 

13.वृक्षों घासों लताओ और झाड़ियों की बेशुमार प्रजातियां इस अभयारण्य की प्रमुख विशेषता है वही अनेकानेक दुर्लभ औषधीय वृक्ष अनगिनत जड़ी बूटियां अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध का विषय है

 

14.सागवान वनों की नायाब संपदा से धनी इस अभयारण्य में ऐसे स्थान भी है जहां सूरज की किरण आज तक जमीन पर नहीं पड़ी

 

15.प्रकृति प्रेमियों के बीच वनस्पतियों और पशु पक्षियों की विविधता के लिहाज से उत्तर भारत के अनोखे अभयारण्य के रूप में लोकप्रिय हो सकने की अनगिनत संभावनाओं से भरपूर किंतु अपेक्षित पर्यटक सुविधाओं के सर्जन और विस्तार के लिए यह सघन वन क्षेत्र अब भी पर्यटन और वन विभाग के पहल की बाट जोह रहा ह

 

16.प्रकृति की इस अमूल्य धरोहर को क्षरण और मानवीय हस्तक्षेप से बचाने के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान बनाने के लिए वर्तमान जिला प्रशासन और वन विभाग के संयुक्त प्रयासों में तेजी आ रही है