हड़प्पा सभ्यता: कला और वास्तुकला

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19506

पश्चिम भारत के विशाल भाग में, तीसरी शताब्दी के इसा पूर्व में सिन्धु नदी के तट पर एक समुद्र सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ जिसे हड़प्पा या सिन्धु घाटी  सभ्यता के रूप में जाना जाने लगा |यहा की विशिष्ट सभ्यता, कला अनेकानेक मूर्तियां, मोहरें, मृदभांड और आभूषणों से पता चलता है | उधारण के लिए मोहनजोदड़ों और हड़प्पा जो कि नगरीय सभ्यता है|

सिन्धु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल और पुरातात्विक प्राप्तियां इस प्रकार है

धौलावीरा (गुजरात) : विशाल जलाशय , स्टेडियम , बांध और तटबंध आदि |

–    लोथल (गुजरात) : इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का मानचेस्टर कहाँ जाता है| धन की भूसी , घोड़े और जहाज की टेराकोटा आक्रति आदि|

–    हड़प्पा (वर्तमान पाकिस्तान) : मातृदेवी की मूर्ति , गेहूं और जौ, पासा ,ताम्र तुला और दर्पण , लाल बलुआ पत्थर आदि |

–    मोहनजोदड़ों (वर्तमान पाकिस्तान) : वृहत स्नानागार, वृहत अन्नागार , दाढ़ी वाले पुजारी की मूर्ति आदि |

–    कालीबंगा (राजस्थान) : चूड़ी कारखाना , अलंकृत ईंटें आदि |

–    बनावली (हरियाणा) : खिलौना हल , जौ, अंडाकार की बस्ती आदि |

–    सुर्कोटदा (गुजरात) : घोड़े की हड्डियों का पहला वास्तविक अवशेष |

–    रोपड़ (पंजाब)

–    राखीगढ़ी (हरयाणा)

–    अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश)

 

अब हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला के बारे में देखते है  –

हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में जो अवशेष पाए गए है वो नगर नियोजन के बारें में बताते है | जैसे कि वहा के नगर अयातकार ग्रिड पैटर्न पर आधारित थे | सड़कें उत्तर–दक्षिण और पूर्व–पश्चिम दिशा में जाती थीं और एक-दुसरे को समकोण पर काटती थी | नगर को अनेक खण्डों में विभाजित करती थी बड़ी सड़कें और छोटी सड़कें अलग-अलग घरों और बहुमंजिला इमारतों को जोड़ने में|

उत्खनन स्थलों में मुख्य रूप से तीन भवन पाए गए है – निवास ग्रह , सार्वजनिक भवन और सार्वजानिक स्नानागार |हड़प्पा के लोग निर्माण के लिए पकी हुई ईंटों का प्रयोग करते थे और इन ईंटों की परत बिछाकर उनको गारे से जोड़ा जाता था | नगर दो भागों में विभाजित था – गढ़ और निचला नगर | पश्चिमी भाग में अन्नागार , प्रशासनिक भवन , स्थम्भों वालें भवन और आंगन पाए गए है | अन्नागारों को वायुसंचार वाहिकाओं और उचें चबूतरों के साथ डिजाईन किया गया था |

सार्वजनिक स्नानागारों का प्रचलन हड़प्पा नगरों की एक प्रमुख विशेषता थी और इसका सबसे अच्छा उधाहरण मोहनजोदड़ों का वृहत स्नानागार है |

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उन्नत जल निकास व्यवस्था थी | हर घर से निकलने वाली छोटी नालियां मुख्य सड़क के साथ –साथ बड़ी नालियों से जुड़ी थी और साफ –सफाई का ध्यान रखते हुए इन्हें ढका गया था और तो और थोड़ी –थोड़ी दूरी पर मलकुंड (सिसपिट) बनाएं गए थे|

यहाँ से सबसे ज्यादा मोहरें, कास्यं मूर्तियां और मृदभांड प्राप्त हुए है |

  1. मोहरें: पुरातत्वविदों को उत्खन्न वाली जगहों पर अलग –अलग प्रकार की मोहरें मिली है जैसे कि वर्गाकार, त्रिकोणीय, आयातकर आदि | और इन मोहरों को बनाने में मुलायम पत्थर स्टेटाइट का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता था | अधिकांश मोहरों पर चित्राक्षर लिपि (पिक्टोग्राफिक स्क्रिप्ट) में मुद्रलेख भी है, पर इन्हें अभी तक पढ़ा नही जा सका है | मुद्रालेख को दाई से बाई और लिखा गया है | इन पर कई पशुओं की आक्रति भी पाई गई है जैसे बैल, गेंडा, हाथी आदि पर गाय का कोई साक्ष्य नही मिला है |मोहरों का मुख्य रूप से वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता था और हो सकता है कि इनका प्रयोग शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए भी किया जाता होगा | उदाहरण के तौर पर पशुपति की मोहर , यूनिकॉर्न वाली मोहर आदि |
  2. कास्य की मूर्तियां: व्यापक स्तर पर देखे तो हडप्पा सभ्यता कासें की ढलाई की प्रथा की साक्षी थी | जैसे कि मोहनजोदड़ों की कासें की नर्तकी, कालीबंगा का कांसे का बैल आदि |
  3. टेराकोटा: पकी हुई मिट्टी से टेराकोटा की मूर्तियां बनाई जाती थी| अधिकांश्त: ऐसी मूर्तियां गुजरात और कालीबंगा के स्थलों से मिली है | उदाहरण मातृदेवी, सींग वाले देवता का मुखौटा आदि |
  4. मृदभांड :जो मृदभांड उत्खन्न स्थल से मिले है उनको दो भागों में वर्गीक्रत किया जा सकता है – सादे मृदभांड और चित्रित मृदभांड| चित्रित मृदभांड को लाल व काले मृदभांडों के रूप मे भी जाना जाता है| वृक्ष, पक्षी, पशुओं की आक्रतियाँ और ज्यामितीय प्रतिरूप चित्रों के आवर्ती विषय थे |
  5. आभूषण :हड़प्पा के लोग मूल्यवान धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डियों और यहाँ तक कि पकी हुई मिट्टी जैसी सामग्री का इस्तेमाल किया करते थे आभूषण बनाने के लिए | उदाहरण अंगूठियाँ, बाजूबंद इत्यादि आभूषण पुरुष एवम महिलाएं पहनते थे | पर करधनी, झुमके और पायल केवल महिलाएं ही पहनती थी | कर्निलीयन , नीलम , क्वार्टज, स्टेटाइट आदि से बने हुए मनके भी काफी लोकप्रिय थे और बढ़े पैमाने पर इनका निर्माण किया जाता था | इस बात का साक्ष्य चंदहुदड़ों और लोथल में मिले कारखानों से स्पष्ट है| सर्वश्रेष्ठ उदाहरण में दाढ़ी वाले पुजारी की अर्द्ध – प्रतिमा सिन्धु घाटी की सभ्यता से प्राप्त हुई है |

 

सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का संक्षिप्त विवरण –

 

  1. यह सभ्यता कांस्य युग (ताम्रपाषाण काल) के अंतर्गत आता है|
  2. इस सभ्यता का विस्तार पश्चिम में बलूचिस्तान तक, पूर्व में आलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक, दक्षिण में दाइमाबाद (महाराष्ट्र) तक और उत्तर में मंदा (जम्मू-कश्मीर) तक था|
  3. इस सभ्यता में किसानों और व्यापारियों का प्रभुत्व था जिसके कारण इस सभ्यता को कृषि-वाणिज्यिक सभ्यता के रूप में जाना जाता है|
  4. इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि 1921 में सर्वप्रथम हड़प्पा नामक स्थान पर ही दयाराम साहनी की देखरेख में खुदाई के माध्यम से इस सभ्यता की खोज की गई थी|
  5. रेडियोकार्बन डेटिंग के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता का काल 2500-1750 ईसा पूर्व के आसपास निर्धारित किया गया है|
  6. इस सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी “नगर योजना” थी| इस सभ्यता के दौरान शहरों को दो भागों दुर्ग (शासक वर्ग द्वारा अधिकृत) और निचले शहर (आम लोगों का निवास स्थान) में विभाजित किया गया था|
  7. धौलावीरा इस सभ्यता का एकमात्र स्थल है जहाँ शहर को तीन भागों में विभाजित किया गया था|
  8. चहुन्दरो एकमात्र ऐसा शहर था जहाँ दुर्ग नहीं थे|
  9. इस सभ्यता में नगर योजना “ग्रिड प्रणाली” पर आधारित थी| इस सभ्यता के लोग भवन निर्माण के लिए पके हुए ईंटों को इस्तेमाल करते थे| इसके अलावा नालियों का उत्तम प्रबंध, किलाबन्द दुर्ग और लोहे के औजारों की अनुपस्थिति इस सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं थी|
  10. सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों ने सर्वप्रथम कपास का उत्पादन किया था जिसे ग्रीक भाषा में “सिनडम” कहा जाता है और यह सिंध से प्राप्त हुआ था|
  11. सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग बड़े पैमाने पर गेहूं और जौ का उत्पादन करते थे| उनके द्वारा उगाये जाने वाले अन्य फसल दाल, धान, कपास, खजूर, खरबूजे, मटर, तिल और सरसों थे।
  12. इस काल के ज्ञात पशुओं में बैल, भेड़, भैंस, बकरी, सूअर, हाथी, कुत्ता, बिल्ली, गधा और ऊंट प्रमुख थे।
  13. इस सभ्यता का सबसे महत्वपूर्ण पशु “बिना कूबड़ वाले बैल” या “एक सींग वाला गैंडा” था|
  14. इस सभ्यता के दौरान बाह्य और आंतरिक व्यापार विकसित अवस्था में था, लेकिन भुगतान “वस्तु-विनिमय प्रणाली” द्वारा होता था|
  15. इस सभ्यता के लोगों ने स्वतः ही वजन और माप प्रणाली विकसित की थी, जो 16 के अनुपात में थी|
  16. शवों को दफनाने या जलाने का काम उत्तर-दक्षिण दिशा में किया जाता था|
  17. हड़प्पा संस्कृति की सबसे कलात्मक कृति “शैलखड़ी की मुहरें” हैं| हड़प्पा कालीन लिपि चित्रात्मक थी लेकिन अभी तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है| इस लिपि में पहली पंक्ति दाएं से बाएं ओर और दूसरी पंक्ति बाएं से दाएं ओर लिखी जाती थी| इस शैली को सर्पलेखन (Boustrophedon) कहा जाता है।
  18. सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई से “स्वस्तिक” के निशान भी मिले हैं|
  19. मूर्तियों के माध्यम से पता चलता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान देवी माँ (मातृदेवी या शक्ति) की पूजा होती थी| इसके अलावा “योनि” (महिला यौन अंग) के पूजा के सबूत भी मिले हैं|
  20. इस काल के प्रमुख पुरुष देवता “पशुपति महादेव” अर्थात पशुओं के भगवान (आद्य-शिव) थे| जिनकी आकृति खुदाई से प्राप्त एक मुहर पर मिली है| इस आकृति में एक पुरुष योगमुद्रा में बैठे हुए हैं एवं चार जानवर (हाथी, बाघ, गैंडा और भैंस) से घिरे हुए हैं| इसके अलावा उनके पैरों के पास दो हिरण खड़े हैं| सिन्धु घाटी सभ्यता के दौरान “शिवलिंग” की पूजा भी व्यापक रूप से होती थी|
  21. इस काल के लोगों का मुख्य व्यवसाय “कताई”, “बुनाई”, “नाव बनाना”, “सोने के आभूषण बनाना”, “मिट्टी के बर्तन बनाना” और “मुहरें बनाना” था|