S-400 एयर मिसाइल सिस्टम क्या है और भारत के लिए क्यों जरूरी है?

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S-400 डिफेन्स सिस्टम की डिलीवरी में 18 से 19 महीने लगेंगे. यह जानकारी रूस के उप प्रधानमंत्री युरी बोरीसोव ने 8 सितम्बर 2019 को दी थी.

भारत, रूस से वर्तमान समय की आधुनिकतम वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली S-400 ‘ट्रायम्फ़ (Triumf) हासिल करने जा रहा है.  इस डील पर भारत और रूस के शीर्ष नेताओं ने 2016 में गोवा में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर किये थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा के दौरान इस सौदे को अंतिम रूप दिया गया और इस समझौते की संभावित कीमत 5.5 बिलियन डॉलर या 36 हजार करोड़ रुपये के लगभग बताई जा रही है. समझौते के तहत रूस, भारत को पांच ‘S-400 एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम’ 40 हेलिकॉप्टर और 200 ‘कामोव KA- 226-T’  हेलिकॉप्टर देगा.

इस लेख में हम इस बात का वर्णन करेंगे कि यह वायु रक्षा प्रणाली क्या है और यह भारत के लिए इतनी जरूरी क्यों है.

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S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का इतिहास

रूस द्वारा वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली S-300 के विकास के प्रयास रूस और अमेरिका के बीच जारी शीत युद्ध के समय से जारी हैं. इस समय रूस को अमेरिका से परमाणु हमले का डर सता रहा था इसलिए रूस ने S-300 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली को विकसित किया था.

S-300 शुरूआत में हमले के लिए आने वाली क्रूज मिसाइलों और विमानों के खिलाफ रक्षा करने के लिए विकसित की गयी थी, लेकिन बाद वाले संस्करण बैलिस्टिक मिसाइलों को भी रोक सकते हैं. S-300 रक्षा मिसाइल प्रणाली को 1970 के दशक में सोवियत संघ में प्रमुख औद्योगिक परिसरों, शहरों और अन्य रणनीतिक संपत्तियों की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था. रूस ने इसका एडवांस्ड वर्जन तैयार किया है जो कि 2007 से सेवा में है और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रणालियों में से एक मानी जाती है.

रूसी सेनाओं ने कम से कम आधा दर्जन S-400 रेजिमेंट तैनात किए हैं, उनमें से कम से कम दो मास्को की सुरक्षा के लिए हैं. इसके अलावा सतह से हवा में प्रहार करने में सक्षम S-400 को रूस ने सीरिया में भी तैनात किया है.

आधुनिकतम वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली S-400 ‘ट्रायम्फ़ (Triumf) के बारे में;

S-400 प्रणाली को रूस ने चीन को सप्लाई भी शुरू कर दी है और यह टर्की और भारत को बेचने के समझौते कर चुका है. S-400 वर्तमान में दुनिया की सबसे उन्नत वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली है जो कि एक साथ कई हमला करने वाली वस्तुओं जैसे सभी प्रकार के विमान, मिसाइल और ड्रोन को 400 किमी की रेंज तक पता लगाकर खत्म कर सकता है.

S-400; वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली की विशेषताएं इस प्रकार हैं;

1. S-400 प्रणाली S-300 का उन्नत संस्करण है.

2. S-400 लगभग 10,000 फीट (30 किमी) की ऊंचाई तक निशाना साध सकता है.

3. इसकी तैनाती में केवल 5 से 10 मिनट का समय लगता है.

4. यह डिफेंस सिस्टम एक साथ 36 मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है.

5. इस प्रणाली में एक साथ तीन मिसाइलें दागी जा सकती हैं और इसके प्रत्येक चरण में 72 मिसाइलें शामिल हैं.

6. S-400 को सतह से हवा में मार करने वाला दुनिया का सबसे सक्षम मिसाइल सिस्टम माना जाता है.

7. यह सिस्टम इतनी उन्नत है कि 400 किमी. की रेंज में आने वाली मिसाइलों एवं पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को नष्ट कर सकता है. इसमें अमेरिका के सबसे उन्नत फाइटर जेट F-35, F-16 और F-22 को भी गिराने की क्षमता है.

how-s 400 system works

8. S-400 प्रणाली से विमानों सहित क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों तथा ज़मीनी लक्ष्यों को भी निशाना बनाया जा सकता है.

9. मिसाइल सिस्टम की अधिकतम रफ्तार 4.8 किलोमीटर प्रति सेकंड तक है जबकि इसके नवीनतम संस्करण में यह हाइपरसोनिक गति से हमला कर सकती है.

S-400 रक्षा मिसाइल प्रणाली का भारत के लिए महत्व;

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि चीन इस रक्षा प्रणाली को रूस से हासिल कर चुका है. भारत लगभग 4000 किलोमीटर लंबी भारत- चीन सीमा पर अपनी वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए लंबी दूरी की मिसाइल प्रणालियां खरीदना चाहता है.

S-400 ट्रियंफ एंटी मिसाइल सिस्टम से भारत को एक ऐसा कवच मिल जाएगा जो किसी भी मिसाइल हमले को नाकाम कर सकता है. इस सिस्टम से भारत पर होने वाले परमाणु हमले का भी जवाब दिया जा सकेगा. अर्थात यह डिफेंस सिस्टम भारत के लिए चीन और पाकिस्तान की न्यूक्लियर सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलों से कवच की तरह काम करेगा. यहाँ तक कि यह सिस्टम पाकिस्तान की सीमा में उड़ रहे विमानों को भी ट्रैक कर सकेगा.

अमेरिका इस डील का विरोध क्यों कर रहा है?

ज्ञातव्य है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार खरीदने वाला देश है. भारत ने पिछले 5 वर्षों के दौरान कुल वैश्विक आयात के 12% हथियार खरीदे हैं. भारत ने पिछले 5 वर्षों में अपने कुल हथियारों के आयात का 62% हिस्सा रूस से खरीदा है, यही बात अमेरिका को पसंद नहीं है. अमेरिका चाहता है कि भारत, रूस से नहीं बल्कि उससे हथियार खरीदे. यही कारण है कि अमेरिका, भारत और रूस की S-400 ट्रियंफ एंटी मिसाइल सिस्टम डील का विरोध कर रहा है. अमेरिका, चाहता है कि भारत, अमेरिका की “थाड” प्रणाली खरीदे.

इसके अलावा विरोध के कारण यह है कि S-400 को अमेरिका की “थाड” एंटी मिसाइल सिस्टम की टक्कर का माना जाता है. जानकार यह भी मान रहे हैं कि S-400 सिस्टम अमेरिका की संवेदनशील सैन्य प्रौद्योगिकी में सेंध लगा सकता है.

सारांश के तौर पर यह कहा जा सकता है कि भारत के द्वारा रूस के साथ किया गया यह सौदा दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. भारत को ऐसी वायु रक्षा प्रणाली की सख्त जरूरत है जो कि दो मोर्चों पर परमाणु हमलों का जबाब दे सके.