मजदूर बने करोड़पति, पन्ना के इतिहास में सबसे महंगा बिका हीरा

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1.मजदूर बने करोड़पति, पन्ना के इतिहास में सबसे महंगा बिका हीरा:-

मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की उथली खदान में एक मजदूर को मिला 42.59 कैरेट का हीरा 2.55 करोड़ में बिका है। यह हीरा झांसी निवासी सोने-चांदी के कारोबारी राहुल अग्रवाल ने बोली लगाकर खरीदा। पन्ना कार्यालय के इतिहास में यह पहला हीरा है, जिसकी कीमत इतनी अधिक मिली है। वहीं, 12.58 कैरेट का एक अन्य हीरा 54 लाख 34 हजार 560 रुपये में बिका। यह हीरा 14 सितंबर को कृष्णा कल्याणपुर की ही खदानमें कृषक प्रकाश शर्मा को मिला था। ज्ञात हो, 28 दिसंबर से चल रही हीरों की नीलामी में अब तक लगभग चार करोड़ रुपये के हीरे बिक चुके हैं।

नौ अक्टूबर को मोतीलाल को मिला था यह हीरा
42.59 कैरेट का हीरा नौ अक्टूबर 2018 को कृष्णा कल्याणपुर ग्राम के पटी नामक स्थान पर संचालित खदान से मिला था। खदान मजदूरी करने वाले मोतीलाल प्रजापति निवासी बेनीसागर मोहल्ला पन्ना ने 200 रुपये की लीज पर खदान छह महीने के लिए ली थी। उसे सिर्फ तीन महीने में ही हीरा मिल गया था।

गरीब किसान को मिला बेशकीमती हीरा
जिला मुख्यालय से लगभग नौ किलोमीटर दूर समीपी ग्राम कृष्णा कल्याणपुर (पटी) में उथली खदान से कृषक राधेश्याम सोनी को शनिवार सुबह उथली खदान से 18 कैरेट 13 सेंट का बेशकीमती जैम क्वालिटी का हीरा मिला। लंबे-चपटे इस हीरे का अष्टांग घुमावदार है। हीरे की कीमत 50 लाख से अधिक आंकी जा रही है। एक माह पूर्व भी इसी खदान में राधेश्याम को पांच कैरेट का हीरा मिल चुका है।

चार माह के अंतराल में मिला तीसरा जैम क्वालिटी का हीरा
14 सितंबर को जनकपुर के एक किसान को खेत में उथली खदान में जैम क्वालिटी का हीरा मिला था, जिसकी कीमत भी लाखों में थी। इसके बाद अक्टूबर माह में मजदूर मोतीलाल को 42 कैरेट का हीरा मिला। अब दिसंबर में कृषक राधेश्याम सोनी को 18 कैरेट 13 सेंट उज्जवल क्वालिटी का हीरा मिला है।

हीरा कार्यालय के अनुसार, हीरा बिक्री के बाद साढ़े 11 फीसद रॉयल्टी व एक फीसद इनकम टैक्स काटा जाता है। पैन कार्ड न होने की स्थिति में बीस फीसद टैक्स काटा जाता है। पैन कार्डधारी बाद में एक फीसद अपना क्लैम करके वापस ले सकते हैं।

यह होती है उथली खदान
प्रशासन की अनुमति से तय क्षेत्र में किसान या मजदूर पट्टे पर जमीन लेते हैं जो खेतों के आसपास होती हैं। यहां पट्टाधारक खोदाई कर हीरे तलाशते हैं। ऐसी जमीनों को ही उथली खदान कहा जाता है।

2.2018 में कहीं योजनाओं तो कहीं बयानों से दो-चार होती रही आम लोगों की जिंदगी:-

ए साल के आगमन के लिए देश और दुनिया पूरी तरह से तैयार है। हर जगह 2018 में बहुत कुछ हुआ। इनमें से कुछ हमेशा के लिए याद रह जानी वाली घटनाएं भी हैं। भारत की ही यदि बात करें तो 2018 कई तरह की योजनाओं और बयानों से भरा रहा। राजनीतिक बयानबाजी और केंद्र सरकार की योजनाओं से लोगों को काफी कुछ मिला। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के भी कुछ फैसले काफी यादगार भरे रहे।  

राम मंदिर बेचैनी और खींचतान
न केवल भाजपा बल्कि जनता और विपक्ष के लिए भी राम मंदिर भावनाओं का ज्वार है। दिल्ली में हुए संतों के धर्मादेश समागम, फिर अयोध्या, दिल्ली और नागपुर आदि शहरों में हुई धर्मसभाओं के बाद यह मुद्दा फिर गरम है। केंद्र सरकार पर उसके अपने ही मंदिर के लिए दबाव बढ़ा रहे हैं जबकि विपक्ष इस ताजा उभार को चुनाव से जोड़कर देख रहा है और चाहता है कि जो भी होना हो, लोकसभा चुनाव के बाद हो। इन दिनों मंदिर पर बेचैनी इतनी बढ़ी हुई है कि भाजपा के कुछ नेता सरकार पर अध्यादेश लाने का भी दबाव डाल रहे हैं। यह कितना कारगर होगा, वही जानें लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर और फिलहाल पक्ष और विपक्ष एकराय है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी निर्णय हो, उन्हें मान्य होगा।

इसमें भी संदेह नहीं कि पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए 2019 का चुनाव कई मायनों में बहुत निर्णायक होने वाला है। यही कारण है कि राममंदिर को लेकर इतनी खींचतान मची है। मायावती ने तो आरोप लगा दिया कि महंगाई और अन्य बड़े मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए मंदिर का विषय फिर उठाया जा रहा है जबकि कांग्रेस ने भाजपा के राम प्रेम को ही कठघरे में लाने की कोशिश की। सबसे दिलचस्प प्रतिक्रिया अखिलेश यादव की रही जिन्होंने इटावा में दो हजार एकड़ में भव्य विष्णु मंदिर बनाने की घोषणा कर दी। मंदिर के सामने मंदिर! लेकिन यही राजनीति है। बस, विस्मित और भ्रमित है तो बेचारी जनता।

किसान बदहाली पर राजनीति

भला भारत जैसे कृषिप्रधान देश में ऐसा कौन हो सकता है जिसे किसानों की चिंता न हो और वह भी तब जब किसानों के साथ खेती की बदहाली सदैव चर्चा में रहती है? इस सवाल का जवाब जितना आसान है, किसानों को बदहाली से निकालने के उपाय उतने ही मुश्किल। इस साल यह मुश्किल इसलिए और बढ़ गई क्योंकि किसानों की समस्या से भली तरह परिचित होने के बाद भी उनकी बेहतरी के वैसे उपाय नहीं किए जा सके जैसे आवश्यक थे। हालांकि केंद्र सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के अपने वादे के तहत एमएसपी मूल्य बढ़ाने के अतिरिक्त अन्य अनेक उपाय करती रही लेकिन बीते सालों की तरह इस साल भी वे नाकाफी साबित हुए।किसान कभी इस तो कभी उस राजनीतिक दल की अगुआई में सड़कों पर उतरता रहा या यह कहें कि उतारा जाता रहा लेकिन कृषक हितैषी इन दलों ने उनके भले के लिए कोई मांग की भी तो कर्जमाफी की वह मांग जो नाकामी का पर्याय बन चुकी है। शायद किसानों की बदहाली तब तक दूर नहीं होने वाली जब तक वे यह नहीं कहते कि जरूरत उनका कर्ज माफ करने की नहीं, कृषि की लागत घटाने और कृषि उपज का मुनाफा भरा मूल्य देने की है। उम्मीद करते हैं कि नया साल किसानों की बेहतरी का संदेश लेकर आएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन मधुकर राव भागवत 2018 में सालभर चर्चा में रहे जिसका सकारात्मक असर समाज में भी दिखने लगा है। चाहे राम मंदिर आंदोलन को फिर से देश में स्थापित करना हो, संघ के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा को बुलाना हो या दिल्ली में 17 सितंबर से तीन दिनों तक आयोजित कार्यक्रम में बड़े बेबाकी से लोगों के प्रश्नों का जवाब देना हो। अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के मुद्दे को विश्व हिंदू परिषद की ओर से उठाए जाने पर संघ प्रमुख भागवत पिछले चार वर्षों तक कहते रहे कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अच्छा काम कर रही है, सरकार को समय दिया जाना चाहिए लेकिन जब लगने लगा कि अब समय बीतता जा रहा है, तब उन्होंने विजयदशमी उत्सव के दिन नागपुर से देश, सरकार, समाज और स्वयंसेवकों को संदेश देने का काम किया कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनना ही चाहिए।अक्टूबर में मुंबई में हुई संघ कार्यसमिति की बैठक में भी राम मंदिर का मुद्दा उठा और संघ ने साफ शब्दों में कह दिया कि अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा, सरकार चाहे तो अध्यादेश लाए या कानून बनाए। उसके बाद से बिना शोर-शराबे के पूरे देश में आज राम मंदिर का आंदोलन एक बार फिर फैल चुका है। इस साल संघ को लेकर तमाम गलतफहमियों को दूर करने का उनका प्रयास बेहद सराहनीय रहा। हालांकि नागपुर में आरएसएस के समारोह में जब प्रणब मुखर्जी पहुंचे तो खूब हंगामा हुआ। तब भी संघ प्रमुख ने बड़े सहज ढंग से इस पर कहा कि संघ का दरवाजा सभी के लिए खुला है। इसे दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में दिखा भी दिया। कई देशों के राजदूत और देश की गणमान्य हस्तियों की मौजूदगी संघ की स्वीकार्यता ही बता रही थी।

जीएसटी कम होती जटिलताएं

वर्ष 2017 अगर ईयर ऑफ जीएसटी था तो 2018 इसे पटरी पर लाने के वर्ष के रूप में रहा। शुरुआती मुश्किलों के बाद कारोबारियों ने जीएसटी के साथ तालमेल बिठा लिया है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पिछड़े प्रदेशों में भी इस टैक्स का क्रियान्वयन सुचारू रहा है। जीएसटी का सबसे बड़ा योगदान यह है कि इनडायरेक्ट टैक्स के असेसी का आधार बढ़ा है। इससे अर्थव्यवस्था को संगठित रूप मिलने में भी आसानी हुई है। शुरुआती महीनों में भले ही जीएसटी का अपेक्षित संग्रह न हुआ हो लेकिन जैसे-जैसे इसका क्रियान्वयन स्थिर होगा, वैसे-वैसे सरकार को खजाना भरने में भी मदद मिलेगी।

वर्ष 2018 में सरकार ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी घटाकर आम लोगों को राहत दी वहीं साल गुजरते हुए कारोबारियों को भी कई तरह की राहत देने का ऐलान कर दिया। वैसे सरकार और विपक्ष ने अपने-अपने ढंग से जीएसटी का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के तौर पर किया है। सरकार ने जहां जीएसटी की दरें घटाकर लोकलुभावन कदम उठाया, वहीं विपक्ष ने इसे गब्बर सिंह टैक्स कहकर सरकार को घेरने की कोशिश की। प्रधानमंत्री ने इसे गुड एंड सिंपल टैक्स करार दिया था। जीएसटी की जटिलताओं को कम करने के लिए समय-समय पर सरकार ने इसमें बदलाव भी किए हैं। 2019 में जहां जीएसटी का नया रिटर्न फॉर्म आएगा जिसका इंतजार कारोबारियों को है, वहीं लोकसभा के चुनाव परिणाम जीएसटी की दशा और दिशा तय करेंगे।

टॉयलेट व गैस सिलेंडर

ग्रामीण महिलाओं को मिला सम्मान साल 2018 को महिलाओं, खासतौर पर ग्रामीण महिलाओं को मिले सम्मान के तौर पर याद किया जाएगा। मुख्यत: यह दो वजहों से हुआ। पहला देश को खुले में शौच मुक्त बनाने के प्रयासों के नतीजों से और दूसरे महिलाओं की रसोई को स्वच्छ और धुआंरहित करने के उद्देश्य से उज्ज्वला स्कीम के तहत रसोई गैस उपलब्ध कराने से। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत घर-घर में टॉयलेट बनाने की योजना मौजूदा सरकार की प्राथमिकता रही है। इसके चलते देश के काफी बड़े हिस्से को खुले में शौच से मुक्त करने में सफलता मिली है।देशभर में टॉयलेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 97 फीसद पर पहुंच गई है जो चार साल पहले 38 फीसद थी। 25 राज्यों के 577 जिले खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके हैं। दूसरी तरफ महिलाओं की रसोई को साफ-सुथरा और धुएं से मुक्त बनाने के लिए शुरू हुई उज्ज्वला स्कीम के लक्ष्य को समय से पहले ही पूरा कर लिया गया। सरकार इस साल अगस्त में ही पांच करोड़ कनेक्शन बांट चुकी है। इस स्कीम से उन ग्रामीण महिलाओं को राहत मिली है जिन्हें ईंधन की तलाश में तीन-चार किलोमीटर तक रोज जाना पड़ता था और रसोई में लकड़ी के धुएं से उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा था। अब इसका दायरा सरकार ने बढ़ा दिया है। पूरे देश में सभी गरीब परिवारों को सरकार ने गैस सिलेंडर देने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही बड़े सिलेंडर के साथ-साथ सरकार ने छोटे सिलेंडर भी उपलब्ध कराने का फैसला लिया है। सौभाग्य व उज्ज्वला योजनाओं ने भी काफी राहत दी है। सौभाग्य योजना ने एक वर्ष में 2.35 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाने का कमाल दिखाया है तो उज्ज्वला योजना ने तकरीबन 90 फीसद गरीबों के घरों तक साफ-सुथरी एलपीजी गैस पहुंचाने की व्यवस्था कर दी है।

पेट्रोल व डीजल थमा हाहाकार

अंत भला तो सब भला। यह कहावत पेट्रोल व डीजल की कीमतों के इस साल चले उतार-चढ़ाव को देखते हुई सटीक बैठती है। अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता की वजह से वर्ष की शुरुआत से ही कच्चे तेल की कीमतों में तेजी का रुख था। बाजार में बढ़ते भावों की वजह से दळ्निया भर में सरकारों की सांसें फूल रही थीं। ईरान पर जब अमेरिकी पाबंदी आयद हुई तो लगा कि यह और आसमान छू लेगी लेकिन वह कच्चे तेल की कीमत ही क्या जो अनुमान पर सही उतरे। बाजार के अनुमानों और विश्लेषणों को धता बताते हुए क्रूड दो हफ्ते में 30 फीसद तक क्रैश कर गया और इससे सबसे ज्यादा राहत की सांस ली भारत सरकार ने। खासतौर पर तब जब पांच राज्यों में चुनावी बिगुल फूंका जा चुका था और आम चुनावों की तरफ दौड़ जारी हो चुकी थी।विपक्ष पेट्रोल व डीजल की कीमतों को लेकर पूरी घेराबंदी करने की जुगत में था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। एक महीने में घरेलू बाजार में पेट्रोल व डीजल 10 रुपए तक सस्ते हो गए। आम जनता ने तो राहत की सांस ली हालांकि आलोचक अभी इतने से संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा टैक्स में वांछित कमी करके पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी लाने की अभी भी काफी गुंजाइश बताई जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने इन पर टैक्स बढ़ाकर अपनी कमाई में जोरदार इजाफा किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कच्चे तेल की गिरती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपए की सुधरती स्थिति को देखते हुए तेल के दामों में कमी करके जनता को और राहत दी जाएगी।

मोबाइल डेटा बना जिंदगी का हिस्सा

अब से डेढ़-दो साल पहले लोग मोबाइल डेटा का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर करते थे। मोबाइल ऑपरेटरों की तरफ से मिलने वाला ये डेटा इतना महंगा था कि देश में इसका औसत इस्तेमाल 2016 तक मात्र 1.1 जीबी प्रति व्यक्ति प्रति माह था लेकिन स्मार्टफोन के इस्तेमाल में वृद्धि और सितंबर 2016 में रिलायंस जियो के लांच ने मोबाइल डेटा के समूचे परिदृश्य को बदलकर रख दिया। फलस्वरूप डेटा के प्रति व्यक्ति खपत में तेज वृद्धि हुई और साल 2018 में यह बढ़कर 6 जीबी प्रति माह प्रति ग्राहक तक पहुंच गया है। देश में करीब 35 करोड़ मोबाइल ग्राहक स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। डेटा की खपत करने में सबसे अधिक सक्रिय यही ग्राहकवर्ग है। डेटा की इस बढ़ती खपत के पीछे इसकी कीमत में भी काफी कमी एक बड़ी वजह है। खासतौर पर जियो के आने के बाद डेटा की कीमत में काफी कमी आई है।डेटा इस्तेमाल पर जियो के असर का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अकेले जियो के ग्राहकों का औसत इस्तेमाल 11 जीबी प्रति माह प्रति ग्राहक पर पहुंच गया है। डेटा के इस बेबाक इस्तेमाल के चलते लोगों में वीडियो स्ट्रीमिंग का इस्तेमाल भी अब काफी सहज रूप से देखा जा सकता है। सरकारी सेवाओं के ऑनलाइन होने और ऑनलाइन बैंकिंग के प्रचलन ने भी डेटा इस्तेमाल को बढ़ाने में मदद दी है। साथ ही ट्विटर, फेसबुक, वाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी डेटा के इस्तेमाल को बढ़ाने में सहायक साबित हुए हैं। लोगों की जिंदगी में डेटा का यह महत्व यही रुकता नहीं दिखता। जानकारों का अनुमान है कि अगले पांच सालों में डेटा की खपत का स्तर 12-13 जीबी प्रति माह प्रति ग्राहक तक पहुंच जाएगा।

आरबीआइ सरकार से रार

पहले जापान में सुनने को मिला फिर अमेरिका में और उसके बाद भारत में। हम बात कर रहे हैं लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार और देश के केंद्रीय बैंक के बीच चल रहे रार की। भारत में भी सरकार और आरबीआइ के बीच की तनातनी वैसे तो काफी पुरानी है लेकिन इस वर्ष यह जिस चरम पर पहुंची उसकी परिकल्पना किसी ने नहीं की होगी। सबसे पहले तो सरकार की तरफ से नामित आरबीआइ के केंद्रीय बोर्ड के सदस्यों ने अपनी बात मनवाने की कोशिश की। गवर्नर उर्जित पटेल जिन्हें राजग सरकार की पसंद का व्यक्ति माना जाता था, ने एक सिरे से सरकार के सुझावों को खारिज कर दिया। सरकार ने धारा-7 लगाने की धमकी तक दे दी। इसके तहत सरकार आरबीआइ पर अपने फैसले लाद सकती है। हालांकि इसका इस्तेमाल आज तक नहीं हुआ है। विवाद बढ़ता गया जिसकी परिणति गवर्नर पटेल के इस्तीफे के तौर पर हुई। आजाद भारत में सरकार के साथ मनमुटाव की वजह से अपने पद से इस्तीफा देने की यह दूसरी घटना थी।

सरकार पर पहले से ही देश के संस्थानों की स्वायत्तता के साथ समझौता करने का आरोप लगता रहा है। पटेल के इस्तीफे ने इसे और हवा दी। विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिला। पटेल के इस्तीफे को रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत के लिए बेहद नकारात्मक माना। बहरहाल, सकते में आई सरकार ने दो दिनों के भीतर ही शक्तिकांत दास को नया आरबीआइ गवर्नर नियुक्त कर दिया, जिससे अनिश्चितता जैसा कोई माहौल नहीं बन पाया। अब सभी की नजर नए आरबीआइ गवर्नर के अगले कदम पर होगी।

 

3.प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को संसदीय चुनाव में भारी जीत पर बधाई दी:-

भारत ने बांग्‍लादेश में संसदीय चुनाव सफलतापूर्वक संपन्‍न होने का स्‍वागत किया है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने सवेरे बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को फोन कर उनकी पार्टी की शानदार जीत पर बधाई दी। उन्‍होंने विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है कि प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्‍व में भारत और बांग्‍लादेश के बीच साझेदारी बनी रहेगी। उन्‍होंने बांग्‍लादेश को क्षेत्रीय विकास के लिए एक घनिष्‍ठ साझेदार और भारत की पड़ोसी सबसे पहले की नीति का एक प्रमुख स्‍तंभ बताया। बांग्‍लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सबसे पहले फोन कर बधाई देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के प्रति आभार व्‍यक्‍त किया। उन्‍होंने बांग्‍लादेश को लगातार और उदारता से समर्थन जारी रखने पर भारत को धन्‍यवाद दिया है।बांग्‍लादेश में भारत की पूर्व उच्‍चायुक्‍त वीना सीकरी ने कहा है कि दोनों देशों के रिश्‍ते अगले पांच सालों में नई ऊंचाईयों पर पहुंचेंगे।

4.प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मध्यम आय समूह के लिए ऋण सब्सिडी मार्च 2020 तक बढ़ी:-

आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मध्‍यम आय वर्ग के लिए ऋण सब्सिडी की व्‍यवस्‍था मार्च 2020 तक के लिए बढ़ा दी गई है। नई दिल्‍ली में आज उन्‍होंने बताया कि इस योजना के तहत 68 लाख से अधिक मकानों की मंजूरी दी गई है। 37 लाख मकान बन रहे हैं और साढ़े 13 लाख मकान बनाकर लाभार्थियों को दे दिए गए हैं।

5.आईसीसी ने वर्ष 2018 की महिला एकदिवसीय और टी-ट्वेन्‍टी क्रिकेट टीमों की घोषणा की:-

अंतर्राष्‍ट्रीय क्रिकेट परिषद-आईसीसी ने वर्ष 2018 की महिला एकदिवसीय और टी-ट्वेन्‍टी क्रिकेट टीमों की घोषणा की है। न्‍यूजीलैंड की सूज़ी बैट्स को एक दिवसीय टीम का कप्‍तान और भारत की हरमनप्रीत कौर टी-ट्वेन्‍टी का कप्‍तान चुना गया है।

6.राष्‍ट्रीय महिला मुक्‍केबाजी प्रतियोगिता कनार्टक के विजयनगर में शुरू:-

 

तीसरी राष्ट्रीय महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता कर्नाटक के विजयनगर में शुरू हो रही है। 6 जनवरी तक चलने वाली इस प्रतियोगिता में देश की शीर्ष मुक्केबाज भाग लेंगी। 10 भारवर्ग श्रेणियों में आयोजित स्पर्धाओं के लिए विभिन्न राज्यों और संस्थाओं से लगभग 250 आवेदन मिले हैं।

विश्व चैंपियनशिप की रजत और कांस्य पदक विजेता- सोनिया चहल, रवीना बोर्गोहाईं, पिंकी जांगड़ा और निखत ज़रीन प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं।