POLITICAL GENERAL AWARENESS

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POLITICAL GENERAL AWARENESS

-: न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया :-

 

चर्चा में क्यों? –

 

संसद के कुछ सदस्यों द्वारा भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश (दीपक मिश्रा) को पद से हटाने संबंधी कार्यवाही के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रिया हेतु राज्यसभा के सभापति को ज्ञापन दिय गया। ध्यातव्य है कि एक न्यायाधीश को उसके पद से केवल ‘सिद्ध कदाचार या अक्षमता'(proven misbehaviour or incapacity) के आधार पर हटाया जा सकता है, जिसे सामान्यतः ‘महाभियोग’ (impeachment)  के नाम से जाना जाता है ।

 

प्रमुख बिंदु –

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायधीशों को हटाए जाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

 

आम बोलचाल में, अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये) और अनुच्छेद 218 (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये) के तहत कार्यवाही के संदर्भ में महाभियोग शब्द का प्रयोग प्रयोग किया जाता है।

 

हालाँकि संविधान में महाभियोग शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।

 

न्यायधीशों को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया –

एक न्यायाधीश को केवल संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है।

 

न्यायाधीशों को उनके पद से हटाए जाने की प्रक्रिया का विस्तृत उल्लेख न्यायाधीशों से पूछताछ अधिनियम,1968 (Judges Inquiry Act,1968) में उल्लिखित है।

 

इस अधिनियम में न्यायाधीशों को पद से हटाने संबंधी निम्नलिखित प्रक्रिया का उल्लेख है :-

न्यायधीशों को पद से हटाए जाने की प्रक्रिया की शुरुआत संसद के किसी भी सदन से की जा सकती है।

 

यदि लोकसभा से शुरुआत होती है तो 100 सदस्यों और राज्य सभा से हो तो 50 सदस्यों के हस्ताक्षर सहित, अध्यक्ष या सभापति को देने के बाद ही प्रस्ताव पेश हो सकता है।”

 

अध्यक्ष या सभापति व्यक्तियों से परामर्श ले सकते हैं और नोटिस से संबंधित प्रासंगिक सामग्री की जाँच कर सकते हैं। इस आधार पर वह या तो प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है या इसे अस्वीकार कर सकता है। 

 

यदि अध्यक्ष या सभापति (जो इसे प्राप्त करता है) द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो शिकायत की जाँच के लिये तीन सदस्यीय समिति का गठन करेगा। 

 

इस तीन सदस्यीय समिति में: –

(i) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश; (ii) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश और (iii) एक विशिष्ट विधिवेता शामिल होंगे। 

 

समिति द्वारा जाँच के आधार पर आरोप(charges) तय होंगे।

 

आरोपों की एक प्रति संबंधित न्यायाधीश को अग्रेषित (forwarded) की जाएगी,न्यायाधीश अपने बचाव के संबंध में एक लिखित दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकता है।

 

समिति जाँच समाप्ति के बाद, अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष या सभापति को सौंपेगी, जो रिपोर्ट को संसद के संबंधित सदन के समक्ष पेश करेगा।

 

अगर रिपोर्ट में ‘सिद्ध कदाचार या अक्षमता’ पाई जाती है, तो न्यायाधीश को पद से हटाने वाले प्रस्ताव को विचार और बहस के लिये आगे बढाया जाएगा।

 

गौरतलब है कि यदि समिति न्यायाधीश को कदाचार का दोषी नहीं पाती है तो यह प्रक्रिया यहीं समाप्त हो जाती है।

 

यदि प्रस्ताव दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित व मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से पारित हो जाए तो उसे राष्ट्रपति को भेजा जाता है ।

 

तत्पश्चात राष्ट्रपति संबंधित न्यायाधीश को हटाए जाने का आदेश जारी करता है।